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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

नथली और मूंछें 


गजब की लड़ाई हो रही थी । पूरा मजमा लग रहा था । दुनिया भर की भीड़ इकठ्ठी हो गई थी । सब लोग तमाशा देख रहे थे । इस देश के लोग इतने "फ्री" हैं कि अगर किसी मकान पर बुलडोजर चलने लगे तो वे शुरु से आखिर तक देखकर ही चैन लेते हैं ।


ना तो मूंछें ही नीची होने का नाम ले रहीं थीं और ना ही "नथली" भी किसी प्रकार का कंप्रोमाइज करने के मूड में थी । दोनों लड़ते लड़ते हिन्दी से अंग्रेजी में आ गये । लड़ाई भी "क्लासिक" होनी चाहिए ना और हिंदी तो है ही गंवारों की भाषा । हिंदी में लड़कर साहब की मूंछें अपना कैरियर बर्बाद वैसे ही नहीं करना चाहती थी जैसे कि कोई भी IAS परीक्षा में भाग लेने वाला व्यक्ति  हिंदी लेकर अपनी ऐसी तैसी नहीं करवाना चाहता है । मजा तो यह है कि परीक्षक हिन्दी जानता ही नहीं और हिन्दी को सबक सिखाने के लिए केवल 20% अंक ही टिका देता है । बेचारा हिनदी भाषी छात्र IAS बन ही नहीं पाता । चयनकर्ताओं की सोच भी गजब होती है "देश पल राज अंग्रेजों ने किया था इसलिए राज करने की क्षमता केवल अंग्रेजीदां में ही होती है   हिन्दी वाले तो गंवार होते हैं" इसी सोच के चलते अंग्रेजीदां का चयन हो जाता है ।


जब अंग्रेजी झाड़ते झाड़ते नकली और मूंछें  दोनों थक गए तो दोनों जने मौहल्ले से अपने आंगन में आ गए । फिर आंगन से कमरे में और फिर लड़ते झगड़ते हुए अब वे बड़े से हॉल में आ गये थे । दोनों के कपड़े पसीने से पूरे भीग गए थे  । लड़ाई चीज ही ऐसी है कि आदमी अपनी पूरी जान लगा देता है लड़ने में । वैसे भी हम भारतीयों को तो लड़ने का शाश्वत अनुभव है । रामायण काल से लेकर महाभारत काल और फिर शक, कुषाण, हूण, यवन, अरब , मुगल और अंग्रेज सबसे लड़ते आये हैं । आजादी के बाद भी धर्म , जाति भाषा, राज्य, और भी दूसरे विषयों को लेकर लड़ते झगड़ते रहते हैं । तो लड़ाई में हबने पी एच डी कर रखी है । अब तो कुल लोग हर "पत्थरवार" को पत्थर बरसा कर अपने "कबीलाई" सद्गुणों का परिचय देते रहते हैं।


इतनी देर से लड़ने के बाद भी थोनों की तबीयत नहीं भरी थी । अब वे दोनों लड़ते लड़ते घर से निकलकर फिर से गली में आ गए थे । फिर से लोगों की भीड़ लग गई थी उनकी लड़ाई को  देखने के लिए । लोग केवल लड़ाई देखते नहीं हैं बल्कि लड़ने वालों को उकसाते भी रहते हैं


"अरे, देख क्या यहा है ? मार साले को"


"तूने चूड़ियां पहन रखी हैं क्या ? तू उसका कचूमर बना दे"


इस तरह लड़ाई अपने चरम पर पहुंच जाती है ।


मूंछ अपने नुकीले तीखे तीखे बालों से नथली पर बार बार आक्रमण करती लेकिन नथली भी बड़ी तेज तर्रार थी । एक पलटी ऐसी मारती जिससे मूंछों के सारे बाल नथली के "खाली पेट" के अंदर घुस जाते और नथली मूंछों का दांव बचाने में सफल हो जाती थी । इसी प्रकार जब नथली अपने किनारे लगे भिन्न भिन्न मोतियों से मूंछों पर अटैक करती थी तब मूंछें भी अपना बीच का हिस्सा जो कि खा खाकर मोटा हो गया था , और वह होठों की ढाल का काम भी करता था, नथली के वार को बचा जाता था ।  इस प्रकार नथली के आक्रमण को मूंछों के बीच का मोटा हिस्सा बचा रहा था । 


उनकी यह लड़ाई संसद में पक्ष विपक्ष की तरह अनवरत चलती रही ।

अब दोनों लड़ते लड़ते बीच बाजार आ गये थे । आप तो जानते ही हैं कि बाजार में ऐसे बहुत सारे बुजुर्ग लोग होते ही हैं जो अपने घरों से इसलिए बाजार में आ जाते हैं कि वहां पर अपना ज्ञान बघार सकें । घर में तो कोई उन्हें पेछता नहीं है इसलिए वे बाजार में अपनी चौधराहट चला सकें । ऐसे ही चार पांच "होशियार चंद" वहां पर आ गये और मूंछों को अपने अनुभव और ज्ञान से समझाने लगे । 


इसी तरह नथली को अकेला देखकर "छमिया भाभी" जैसी बहुत सी "जान जुगारी" औरतें उसकी साइड हो गई । छमिया भाभी हमारे मौहल्ले में ही हमारे घर के सामने ही रहती हैं । सुबह शाम उनके "दर्शन लाभ" हो जाते हैं हमें । जिस दिन उनके दर्शन हो जाते हैं , वह दिन बड़ा मस्त निकलता है । बाकी दिन तो सूने सूने निकल जाते हैं । पूरा मौहल्ला जान छिड़कता रहता है उन पर । कभी कभी वे पूरे मौहल्ले को दर्शन लाभ से लाभान्वित करने के लिए अपने "झरोखे" में आ जाती हैं जिससे सब लोग "झरोखा दर्शन" करके "नैन सुख" ले लेते हैं । छमिया भाभी की बात को काटने की हिम्मत किसी में भी नहीं है ।

जब भीड़ इकट्ठी हो गई तो लोगों ने उनसे पूछा कि आखिर तुम दोनों लड़ किस बात पर रहे हो ? तब नथली बोली 


"ये मूंछ बहुत गन्दी है । प्यार के पलों में यह दाल भात में मूसल चंद बन जाती है । जब देखो तब दोनों के बीच में आ जाती है" । 


सबने हैरानी से पूछा "जरा खुलकर बताओ । कुछ समझ में नहीं आ रहा है " 


नथली ने तुनक कर कहा " जब भी मेरी नाक की मालकिन और इन मूंछों के साहब पास पास होते हैं । साहब जब भी अपने होंठ हमारी मेमसाब के होंठों की ओर बढ़ाते हैं "किस" करने के लिए तो सबसे पहले ये मुई मूंछें बीच में आ जाती हैं । इसके झाड़ू जैसे बाल ऐसे चुभते हैं कि मालकिन अपने होंठ पीछे कर लेती हैं और वह "किस" मुकम्मल नहीं हो पाता है "। वह रोते रोते बोली । 


इतने में मूंछ बिफर पड़ी और कहने लगी " उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ? बीच में तो खुद आती है और नाम मेरा लगा रही है । मेरे साहब यह कहते हैं कि वे जब भी "किस" करना चाहते हैं तो ये निगोडी "नथली" बीच में आकर सब गुड़ गोबर कर देती है " । 


अब समस्या का पता चल चुका था । झगड़े का कारण तो बहुत सही था । दोनों ही "नेक काम" में व्यवधान डाल रहे थे । अब प्रश्न यह था कि ऐसा क्या किया जाये जिससे वह "नेक काम" आसानी से हो जाए । इतने में एक बुजुर्ग और सयानी अम्मा आगे आई और बोली
"बात तो दोनों की ही सही है । तुम दोनों ही उस "पवित्र कार्य" में व्यवधान पैदा कर रहे हो । और तुम्हें पता होना चाहिए कि उस "पवित्र कार्य" तो शुरुआत है और भी "पवित्र कार्य " करने की । अब यदि इस पवित्र कार्य में बाधा पहुंचेगी तो वह "सर्वोत्तम पवित्र कार्य " कैसे संपन्न हो सकेगा । अत: कार्य में बाधा डालने की सख्त सजा मिलनी चाहिए तुम दोनों को । और इसकी सख्त सजा यही है कि दोनों अपनी अपनी जगह से हट जायें जिससे वह "पवित्र कार्य " अच्छी तरह से किया जा सके । इसलिए तुम दोनों को अपना अपना स्थान खाली कर देना चाहिए । 


इस पर वे दोनों ही बिफर पड़े । मूंछें कहने लगी " मैं तो मर्दानगी की पहचान हूं । यदि मैं ही नहीं रहूंगी तो आदमी और औरत में अंतर कैसे हो पायेगा ? मूंछें तो 'वीरता' की शान हैं । मूंछों से ही पृथ्वीराज चौहान की पहचान है । मूंछों से ही महाराणा प्रताप की पहचान है और मूंछों से ही चंद्रशेखर आजाद की पहचान है । अब यदि मैं ही नहीं रहूंगी तो ये सब 'बहादुर' कैसे दिखेंगे , बिना मूंछों के । फिर , शराबी फिल्म का वह डायलाग भूल गए हो क्या कि मूंछें हों तो नत्थू लाल जैसी" । यदि मूंछें नहीं होंगी तो फिर इस डायलाग का क्या होगा  ? बिना मूंछों के 'साहब' का तो रौब ही खत्म हो जाएगा । फिर पुलिस और डाकुओं का डर तो हमेशा के लिए खत्म ही समझो । यदि मूंछ ही नहीं होगी तो 'मूंछ का बाल' वाली कहावत के क्या होगा"


उधर नथली भी बिफरते हुए बोली " भाड़ में जाए मूंछें और उसके साहब । चेहरे की आन बान और शान 'नाक' से होती है और नाक की शान नथली से होती है । यानी नथली है तो चेहरे की शान है वरना तो शमशान है । ये नथली ही है जो हुस्न में चार चांद लगाती है । फिर नथली से नारी की पहचान है । यदि नथली नहीं रहेगी तो नारी की पहचान कैसे होगी ? तुम पुरुष लोग हमेशा नारी की पहचान मिटाने पर क्यों तुले रहते हो " ? 


अब मामला अस्मिता से जुड़ गया था । जब कोई मामला अस्मिता से जुड़ जाए तो वह और भी पेचीदा हो जाता है । एक मर्दों की तो दूसरी औरतों की अस्मिता की पहचान होने के कारण दोनों को ही अपनी जगह से नहीं हटाया जा सकता है । महाराष्ट्र, राजस्थान,  हरियाणा जैसे राज्यों में तो नथली क्षेत्रीयता की पहचान भी है इसलिए कोई भी यह हिम्मत नहीं कर सकता है कि इनकी पहचान समाप्त कर दे । 


और मूंछों की तो बात ही क्या है । गोलमाल फिल्म में जब उत्पल दत्त "मूंछमुंडा" आदमी को मर्द मानने से ही इंकार कर देता है तो समझ में आ जाता है कि मूंछों की वैल्यू क्या है ? 


जब आम जनता दो खेमों में बंट जाती है तो फिर

कोई निर्णय नहीं हो सकता है । लोग समाचार चैनलों पर होने वाली "लड़ाई" की तरह चिल्लाते रहते हैं और डिबेट किसी निष्कर्षतक नहीं पहुंचपाती है । इसी तरह वे दोनों अंत तक लड़ते झगड़ते ही रहे और बेचारा "किस" ! वह अपने मुकद्दर पर रोता ही रह गया । 




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4 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 12:50 PM

बेहतरीन रचना

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Milind salve

15-Jul-2022 12:55 PM

बहुत खूब

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Seema Priyadarshini sahay

13-Jul-2022 09:46 AM

Nice part

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